❤️श्री श्यामा श्याम❤️

 
❤️श्री श्यामा श्याम❤️
जुगल जन राजत जमुना तीर। नंदनँदन वृषभाननंदिनी, कृतरुचि कुंज-कुटीर।। कुसुम-सेज-सजि साजु सुरतको, सौंधौ भूषन चीर। कल सीकर मकरंद कमलके, परसत मलय समीर।। कुच-गहि चुंवन करत परस्पर, परिरंभन रसवीर। मुख मुसक्यात गात पुलकित सुख, मुखरितु मनिमंजीर।। खर' नख सर उर उरजनि लागत,नभ गत सही सुभीर। वैन कहत रस अँन सैंनदै, नैं ननि करै अधीर ।। विगलित केस सुदेस रोम वरषत सोमनि श्रमनीर। विरह जनित दुखवाकै वैरी, मारि करे सब कीर।। विविधि विहारनि ललितादिक की, दूरि करत सब पीर। व्यास किसोर भोर नहि विछरत, जोवन जोर सरीर।।
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