❤श्री राधा वृन्दावनबिहारी❤

 
❤श्री राधा वृन्दावनबिहारी❤
This Stamp has been used 1 times
गोहनें गुपाल फिरूं, ऐसी आवत मन में। अवलोकन बारिज बदन, बिबस भई तन में। मुरली कर लकुट लेऊं, पीत बसन धारूं। काछी गोप भेष मुकट, गोधन संग चारूं। हम भई गुलफाम लता, बृन्दावन रैना। पशु पंछी मरकट मुनी, श्रवन सुनत बैनां। गुरुजन कठिन कानि कासौं री कहिए। मीरा प्रभु गिरधर मिलि ऐसे ही रहिए॥ मीरा कहती है कि मेरे मन में ऐसा विचार आता है कि सदैव गोपाल के साथ-साथ घूमूं -फिरूं। उसका कमल जैसा मुखडा देख करके मेरा तन विवश हो जाता है। जी करता है कि हाथ में मुरली व छडी लूं और पीले वस्त्र धारण करूं। फिर गोप का वेश बनाकर और सिर पर मुकुट धरकर गोधन (गउओं) के साथ विचरती फिरूं। इस कल्पना से मीरा इतना विमुग्ध होती है कि उसे प्रतीत होता है, वह तो वृंदावन की धूल बन गई है और यहां के पशु, पक्षी, वानर व मुनियों की वाणी अपने कानों में सुन रही है। गुरुजनों की बडी कठोर मर्यादाएं हैं, मैं तो अपने मन की बात उनको बता नहीं सकती। मीरा कहती है कि हे प्रभु, हे मेरे गिरधर! मेरी जैसी कल्पना है, उसी प्रकार मुझसे मिलकर रहिए।
Tags:
 
shwetashweta
uploaded by: shwetashweta

Rate this picture:

  • Currently 3.7/5 Stars.
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5

3 Votes.

 

Blingees made with this stamp

❤️श्री राधा वृन्दावनबिहारी❤️