❤श्री अष्टसखी❤

 
❤श्री अष्टसखी❤
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विशाखा-सखी बिसाखा अति ही प्यारी। कबहुँ न होत संगते न्यारी॥ बहु विधि रंग बसन जो भावै। हित सौं चुनि कै लै पहिरावै॥ ज्यौं छाया ऐसे संग रहही। हित की बात कुँवरि सौं कहही॥ दामिनि सत दुति देह की, अधिक प्रिया सों हेत। तारा मंडल से बसन, पहिरे अति सुख देत॥ माधवी मालती कुञ्जरी, हरनी चपला नैन। गंध रेखा सुभ आनना, सौरभी कहैं मृदु बैन॥ -- तुंगविद्या-तुङ्ग विद्या सब विद्या माही। अति प्रवीन नीके अवगाही॥ जहां लगि बाजे सबै बजावै। रागरागिनी प्रगट दिखावै॥ गुन की अवधि कहत नहिं आवै। छिन-छिन लाडिली लाल लडावै॥ गौर बरन छबि हरन मन, पंडुर बसन अनूप। कैसे बरन्यो जात है, यह रसना करि रूप॥ मंजु मेधा अरु मेधिका, तन मध्या मृदु बैंन। गुनचूडा बारूंगदा, मधुरा मधुमय ऐंन॥ मधु अस्पन्दा अति सुखद, मधुरेच्छना प्रवीन। निसि दिन तौ ये सब सखी, रहत प्रेम रस लीन॥ --चित्रा चित्रा सखी दुहुँनि मन भावै। जल सुगंध लै आनि पिवावै॥ जहां लगि रस पीवे के आही। मेलि सुगंध बनावै ताही॥ जेहि छिन जैसी रुचि पहिचानै। तब ही आनि करावत पानै॥ कुंकुम कौसौ बरन तन, कनक बसन परिधान। रूप चतुरई कहा कहौं, नाहिन कोऊ समान॥ सखी रसालिका तिलकनी, अरु सुगंधिका नाम। सौर सैन अरु नागरी, रामिलका अभिराम॥ नागबेंनिका नागरी, परी सबै सुख रंग। हित सौं ये सेवा करैं, श्री चित्रा के संग॥ - रंगदेवी- रंग देवी अति रंग बढावै। नख सिख लौं भूषन पहिरावै॥ भांति भांति के भूषन जेते। सावधान ह्वै राखत तेते॥ कमल केसरी आभा तन की। बडी सक्ति है चित्र लिखिन की॥ तन पर सारी फबि रही, जपा पुहुप के रंग। ठाढी सब अभरन लिये, जिनके प्रेम अभंग॥ कलकंठी अरु ससि कला, कमला अति ही अनूप। मधुरिंदा अरु सुन्दरी, कंदर्पा जु सरूप॥ प्रेम मंजरी सो कहै, कोमलता गुन गाथ। एतो सब रस में पगी, रंग देवी के साथ॥
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