❤️श्री वृंदावनचन्द्र❤️

 
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थांने काईं काईं कह समझाऊँ म्हारा वाला गिरधारी।पूरब जनम की प्रीति हमारी, अब नहीं जात निवारी।। टेर ।। सुन्दर वदन निरखियो जबसे, पलक न लागे म्हांरी।रोम रोम में अँखियां अटकी, नख सिख की बलिहारी।। 1 ।। हम घर वेग पधारो मोहन, लग्यो उमावो भारी।मोतियन चैक पुरावां बाला, तन मन तोपर वारी।। 2 ।। म्हारो सगपन थां सूँ गिरधर, मैं छूँ दासी थाँरी।चरण कमल मोहे राखो सांवरा, पलक न कीजे न्यारी।। 3 ।। बृन्दावन में रास रचायो, संग में राधा प्यारी।मीरां प्रभु गोप्याँरो वालो, हमरी सुरति बिसारी।। 4 ।।
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shwetashweta
アップした人: shwetashweta

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