सूरत दीनानाथ से लगी तू तो समझ सुहागण सुरता नार॥
लगनी लहंगो पहर सुहागण, बीतो जाय बहार।
धन जोबन है पावणा रो, मिलै न दूजी बार॥
राम नाम को चुड़लो पहिरो, प्रेम को सुरमो सार।
नकबेसर हरि नाम की री, उतर चलोनी परलै पार॥
ऐसे बर को क्या बरूं, जो जनमें औ मर जाय।
वर वरिये इक सांवरो री, चुड़लो अमर होय जाय॥
मैं जान्यो हरि मैं ठग्यो री, हरि ठगि ले गयो मोय।
लख चौरासी मोरचा री, छिन में गेर्या छे बिगोय॥
सुरत चली जहां मैं चली री, कृष्ण नाम झणकार।
अविनासी की पोल मरजी मीरा करै छै पुकार॥