❤श्री राधिका ब्रजचन्द्र❤
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नंद नँदन बृषभानु किसोरी, मोहन राधा खेलत होरी ।
श्रीबृंदावन अतिहिं उजागर, बरन बरन नव दंपति भोरी ॥
एकनि कर है अगरु कुमकुमा , एकनि कर केसरि लै घोरी ।
एक अर्थ सौं भाव दिखावति, नाचति तरुनि बाल बृध भोरी ॥
स्यामा उतहिं सकल ब्रज-बनिता, इतहिं स्याम रस रूप लहो री ।
कंचन की पिचकारी छूटति, छिरकत ज्यौं सचुपावैं गोरी ॥
अतिहिं ग्वाल दधि गोरस माते, गारी देत कहौ न करौ री ।
करत दुहाइ नंदराइ की, लै जु गयौ कल बल छल जोरी ॥
झुंडनि जोरि रही चंद्रावलि, गोकुल मैं कछु खेल मच्यौ री ।
सूरदास -प्रभु फगुआ दीजै, चिरजीवौ राधा बर जोरी ॥
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