❤श्री मुरलीधर❤

 
❤श्री मुरलीधर❤
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बालकृष्ण का ध्यान करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्। वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।। जिन्होंने अपने करकमल से चरणकमल को पकड़ कर उसके अंगूठे को अपने मुखकमल में डाल रखा है और जो वटवृक्ष के एक पर्णपुट (पत्ते के दोने) पर शयन कर रहे हैं, ऐसे बाल मुकुन्द का मैं मन से स्मरण करता हूँ। श्रीगोविन्द दामोदर स्तोत्रम् श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव। जिह्वे पिवस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति।। हे जिह्वे ! तू ‘श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारि ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा गोविन्द ! दामोदर ! माधव !’–इस नामामृत का ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह। विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:। दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति।। जिनकी चित्तवृत्ति मुरारि के चरणकमलों में लगी हुई है, वे सभी गोपकन्याएं दूध-दही बेचने की इच्छा से घर से चलीं। उनका मन तो मुरारि के पास था; अत: प्रेमवश सुध-बुध भूल जाने के कारण ‘दही लो दही’ इसके स्थान पर जोर-जोर से ‘गोविन्द ! दामोदर ! माधव !’ आदि पुकारने लगीं। धव !’ इन मनोहर मंजुल नामों को, जो भक्तों के समस्त संकटों की निवृत्ति करने वाले हैं, भजती रह। सुखावसाने इदमेव सारं दु:खावसाने इदमेव ज्ञेयम्। देहावसाने इदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति।। सुख के अंत में यही सार है, दु:ख के अंत में यही गाने योग्य है और शरीर का अंत होने के समय भी यही मन्त्र जपने योग्य है, कौन-सा मन्त्र? यही कि ‘हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !’ जिह्वे रसज्ञे मधुर प्रिया त्वं सत्यं हितं त्वां परमं वदामि। आवर्णयेथा मधुराक्षराणि गोविन्द दामोदर माधवेति।। हे रसों को चखने वाली जिह्वे ! तुझे मीठी चीज बहुत अधिक प्यारी लगती है, इसलिए मैं तेरे हित की एक बहुत ही सुन्दर और सच्ची बात बताता हूँ। तू निरन्तर ‘हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !’ इन मधुर मंजुल नामों की आवृत्ति किया कर। त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते। वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या गोविन्द दामोदर माधवेति।। हे जिह्वे! मैं तुझी से एक भिक्षा मांगता हूँ, तू ही मुझे दे। वह यह कि जब दण्डपाणि यमराज इस शरीर का अन्त करने आवें तो बड़े ही प्रेम से गद्गद् स्वर में ‘हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !’ इन मंजुल नामों का उच्चारण करती रहना। श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो। जिह्वे पिवस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति।। हे जिह्वे ! तू ‘श्रीकृष्ण ! राधारमण ! व्रजराज ! गोपाल ! गोवर्धन ! नाथ ! विष्णो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !’–इस नामामृत का निरन्तर पान करती रह।
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