शिवशंकर मोपे कृपा कीज्यो, मैं आधीन तुमारा। (टेक)
बाँईं भुजा ऋधिसिधि को बासो, दहनी भुजा गँगधारा।।1।।
सेवा कर भागीरथ ल्यायो, कुल अपने कूँ त्यारा।।2।।
शिवजी थे काशी के बासी, गले रुण्डन की माला।।3।।
बाहन थारे भिषम नाँदियो, गौराँ के भरतारा।।4।।
आक धतूरा को भोग लगत है, बिष का करो अहारा।।5।।
केहरि को बाघम्बर सोहे, सरपन के सिंणगारा।।6।।
गहरी नदियाँ अथाह जलपानी, भवसागर की धारा।।7।।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, मेरो करो निस्तारा।।8।।